WORRY LINES चिंता रेखाएँ

ॐ गं गणपतये नम:।

अक्षरों परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।

निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि।

[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]

किसी भी मूल रेखा :- जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा, हृदय रेखा, भाग्य रेखा, सूर्य रेखा और विवाह रेखा पर उपस्थित द्वीप, काटने वाली आड़ी-टेढ़ी, तिरछी रेखाएँ, जाली जैसे चिन्ह मानसिक व्यथा, चिंता के कारण हो सकते हैं। 

LL मंगल क्षेत्र से उत्पन्न होकर जीवन रेखा को काटने वाली रेखाएँ शारीरिक परेशानियाँ पैदा करती हैं। आगे बढ़कर भाग्य रेखा को काटने पर यही रेखाएँ काम-धंधे में रुकावट करती हैं। इन रेखाओं का कारण परिवार की महिलाएं अथवा मित्र-सम्बन्धी स्त्रियाँ हो सकती हैं।

MM ये रेखाएँ बुध-स्वास्थ्य रेखा को काटती हैं। इनकी वज़ह से जातक शारीरिक थकान, बीमारी अनुभव कर सकता है। स्वास्थ्य रेखा पर द्वीप यह समस्या जटिल कर सकता है।

HH मस्तिष्क रेखा को काटने वाली ये रेखा मानसिक व्यवधान, परेशानी,  फिक्र को दर्शाती है।

SS मंगल से उत्पन्न यह रेखाएँ जातक को बदनामी दिला सकती हैं।

PP शुक्र पर्वत से शुरू होकर जीवन रेखा को काटने वाली रेखाएँ स्वास्थ्य के साथ-साथ धन-संपत्ति को लेकर उत्पन्न हुई फिक्र को दर्शाती हैं। ये रेखाएँ उन विपरीत लिंग वालों को भी दर्शाती हैं जिन्हें जातक में रूचि है। 

TT ये रेखाएँ शुक्र से या जीवन रेखा से निकल कर यदि यात्रा रेखाओं को काटें तो यात्रा सम्बन्धी परेशानियों को प्रकट करती हैं। 

1-1 राहु क्षेत्र से निकल कर यह रेखा यदि मस्तिष्क रेखा को काटती है, तो मानसिक परेशानी पैदा करेगी।

2-2 राहु क्षेत्र से निकल कर यदि ये रेखा हृदय रेखा को काटे मित्र, परिवार वालों के बीच दरार पैदा कर सकती है। 

3-3 राहु क्षेत्र से निकलकर सूर्य रेखा को काटने वाली यह रेखा बदनामी, आर्थिक हानि जैसी चिंताएं दर्शाती है।

4-4 भाग्य रेखा को काटने पर राहु क्षेत्र की रेखा व्यवसाय, नौकरी आदि में उत्पन्न विपरीत परिस्थिति को दिखाती है। 

5-5 ये रेखा राहु द्वारा स्वास्थ्य रेखा को काटने पर स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं को दर्शाती है। 

1-1 दूसरे लोगों द्वारा विघ्न पैदा किया जा सकता है। 

2-2 शारीरिक कमजोरी-अक्षमता परेशानी का कारण बन सकती है। 

3-3 पौरुष, बच्चे पैदा करने में असमर्थता, इसका कारण हो सकता है। 

ये सभी रेखाएं प्रभाव रेखाओं के रूप में काम करती हैं। अतः जातक को अपनी कमजोरी को पहचान कर उसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए।

यह हाथ जरूरत से ज्यादा
चिंता को प्रदर्शित करता है।
 

एक दूसरे  काटती हुई अनेकों रेखाओं की मौजूदगी व्यक्ति की अस्थिर मानसिक प्रकृति को प्रदर्शित करता है। हाथ की बनावट और निम्न चंद्र पर झुकी हुई मस्तिष्क रेखा इसका प्रभाव बढ़ा देती है।  

These lines show that the bearer may have psychic nature, anxiety and a state of confusion. 

ANXIETY :: चिंता, व्यग्रता, उत्कंठा; concern, care, fear, aftercare, thought, perplexity, agitation, impatience, hankering, longing, ardour. 

The psychic hand and drooping line of head increase this tendency multi fold.

Video link  :: https://youtu.be/Vbn0ahRI6HE

चिंता फिक्र WORRY-CONCERN :: व्यथित या विचलित करने वाली कोई भावना, फ़िक्र, परेशानी, डर, अंदेशा, भय, ध्यान, ख़याल, सोच चिंता का कारण बन सकती है।

आत्म निरीक्षण-चिन्तन करें। 

कहाँ कमी हुई, गलती हुई, क्या कमी रह गई, क्या साधन सही थे? क्या साधनों के इस्तेमाल की विधि सही थी?

क्या कार्य योजना और कार्यान्वयन सही थे?

क्या कर्मचारी, सहयोगी अनुभवी, योग्य, कार्य कुशल थे?

क्या परस्पर सहयोग की भावना थी?

क्या पूंजी की समुचित, उपयुक्त व्यवस्था थी?

क्या आपका उद्यम सरकारी नीतियों, कानून, व्यवस्था और सामाजिकता के अनुकूल है। 

यदि ऋण लिया था क्या उसका भुगतान सही तरीके से करने की व्यवस्था थी? क्या ऋण के भुगतान के स्तोत्रों का सही आकलन किया गया था? 

कहीं पूँजी का अपव्यय तो नहीं हुआ?

क्या आपको सम्बंधित विषय का पर्याप्त अनुभव था ?

क्या आप अपने उद्यम में भाग्य को महत्व देते हैं?

क्या आपकी शारीरिक और मानसिक अवस्था सही-उपयुक्त थी?

क्या अन्य समस्याएं आपको प्रभावित कर रही थीं?

क्या संचार-communication की समुचित व्यवस्था थी?

नर हो न निराश करो मन को, कुछ काम करो, कुछ काम करो जग में रहकर  करो। यह जन्म हुआ किस अर्थ हुआ सोचो-समझो कुछ व्यर्थ न हो। 

ईश्वर ने हाथ-पैर दिमाँग दिया है। 

अपने भविष्य का अनुसन्धान करो।चिंतामणि मंत्र सिद्धि :: 

काव्येऽयं व्यगलन्नलस्य चरिते सर्गो निसर्गाज्ज्वलः। द्विधाभूतं रूपं भगवदभिधेयं भवति यत्। ⁠निराकारं शश्वज्जप नरपते!ऊँ नमो भगवते विश्व चिन्तामणि लाभ दे जयदे जशदे जयदे आनय महेसरि मनवांछितार्थ पूरय-पूरय सर्व सिद्धि रिद्धि वृद्धि सर्वजन वश्यं कुरू कुरू स्वाहा। विधि :- इस चिन्तामणि मंत्र को नित्य प्रभात-संध्या में जपें, धूप खेवें तो सर्व सिद्धि होगी।

तस्य द्वादश एष मातृचरणाम्भोजालिमौजेर्महा काव्येऽयं व्यगलन्नलस्य चरिते सर्गो निसर्गाज्ज्वलः। अवामा वामार्द्धे सकलमुभयाकारघटनाद् ⁠द्विधाभूतं रूपं भगवदभिधेयं भवति यत्। तदन्तर्मन मे स्मर हरमयं सेन्दुममलं ⁠निराकारं शश्वज्जप नरपते! सिध्यतु स ते।[सर्ग 14.85]

इस श्लोक से प्रथम मंत्र मूर्ति भगवान् अर्द्ध-नारीश्वर की उपासना का अर्थ निकलता है; फिर, हल्ले खात्मक चिंतामणि मंत्र सिद्ध होता है; तदनंतर चिंतामणि-मंत्र के यंत्र का स्वरूप भी इसी से व्यक्त होता है। 

चिंतामणि-मंत्र का स्वरुप :: 

सर्वांगीणरसामृतस्तिमितया वाचा स वाचस्पतिः⁠स स्वर्गीयमृगीदृशामपि वशीकाराय मारायते; यस्मै यः स्पृहयत्यनेन स तदेवाप्नोति, किं भूयसा ?⁠येनायं हृदये कृतः सुकृतिना मन्मन्त्रचिन्तामणिः।[सर्ग 14.86]

जो पुण्यवान पुरुष मेरे इस चिंतामणि मंत्र को हृदय में धारण करता है, वह शृंगारादि समस्त रसों से परिलु त अत्यंत सरस, वाग्वैदग्ध्य को प्राप्तकर के बृहस्पति के समान विद्वान हो जाता है; वह स्वर्गीय संदरी जनों को भी वश करने के लिये कामवत् सौंदर्यवान् दिखाई देने लगता है। अधिक कहने की कोई आवश्यकता नहीं; जिस वस्तु को जिस समय वह इच्छा करता है, उसके मिलने में किंचिन्मात्र भी देरी नहीं लगती।

पुष्पैरभ्यच्य गंधादिभिरपि सुभगैश्चारुहंसेन मां चे 

निर्यान्ती मन्त्रमूर्ति जति माय मति न्यस्य मय्येव भक्तः; सम्प्राप्ते वरसरान्ते शिरसि करमसौ यस्य कस्यापि धत्ते सोऽपि श्लोकानकाण्डे रचयति रुचिरान कौतुकं दृश्यमस्य।[सर्ग 14.87]

सुंदर हंस के ऊपर गमन करनेवाली मंत्र मूर्ति मेरा पूजन, उत्तमोत्तम पुष्प-गंधादि से, करके और अच्छी तरह मुझ में मन लगाकर जो मनुष्य मेरे मंत्र का जप करता है, उसकी तो कोई बात ही नही; एक वर्ष के अनंतर वह और जिस किसी के ऊपर अपना हाथ रख देता है, वह भी सहसा सैकड़ों हृदय हारी श्लोक बनाने लगता है। मेरे इस मंत्र का कौतुक देखने योग्य है।

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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ 

EMANCIPATION मोक्ष

 EMANCIPATION ब्रह्म लोक, मोक्ष

(Salvation, Bliss, Freedom from rebirth, मुक्ति, परमानन्द)

CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM

By :: Pt. Santosh Bhardwaj

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ॐ गं गणपतये नम:।

अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।

गुणातीतं नीराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥

[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]

मोक्ष के प्रकार :: (1). सालोक्य :- इससे भगवद धाम की प्राप्ति होती है। वहाँ सुख-दु:ख से अतीत, अनंत काल के लिए है, अनंत असीम आनंद है। (2). सामीप्य :- इसमें भक्त भगवान्  के समीप, उनके ही लोक में रहता है। (3). सारूप्य :- इसमें भक्त का रूप भगवान् के समान हो जाता है और वह भगवान् के तीन चिन्ह :- श्री वत्स, भृगु-लता और कोस्तुभ मणी,  को छोड़कर शेष चिन्ह शंख, चक्र, गदा और पद्म आदि से युक्त हो जाता है। 

(4). सायुज्य :- इसका अर्थ है एकत्व। इसमें भक्त भगवान् से अभिन्न हो जाता है। यह ज्ञानियों को तथा भगवान् द्वारा मारे जाने वाले असुरों प्राप्त होती है। सार्ष्टि भी मोक्ष का ही एक अन्य रूप है, जिसमें भक्त को परम धाम में ईश्वर के समान ऐश्वर्य प्राप्त हो जाता हैं। सम्पूर्ण ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य, ये सभी भक्त को प्राप्त हो जाते हैं। केवल संसार की उत्पत्ति व संहार करना भगवान् के आधीन रहता है, जिसे भक्त नहीं कर सकता।

(1). DEVIKA देविका :: 

देविकाSनामिकामूले सन्धिरेखोपरि स्थिता। 

निम्नरूपा मुक्तिदा च नाम्नाष्टैश्वर्यसूचकम्॥ 

उलटे हाथ में अनामिका-सूर्य की ऊँगली की संधि रेखा पर उपस्थित यह गहरी रेखा मनुष्य को मोक्ष दायक है। यह जातक को दिव्य शक्तियाँ भी प्रदान करती है।

Its found at the base of Sandhi Rekha-juncture line. Its deep cut and grants emancipation from life-rebirth. It gives divine powers like omnipotence. It grants cessation of further births to the bearer.

(2). PARIDHI परिधि ::

परिधिस्तु तदूर्ध्वस्था नित्यनैमित्तिकादिषु।

कर्मस्वभिरुचिं कुर्यात मुक्तिं वा सम्प्रयच्छति॥ 

परिधिः सततं वहौ होम कर्म प्रसूचनात्। 

उलटे हाथ में अनामिका-सूर्य की ऊँगली पर उपस्थित यह मनुष्य के मन मस्तिष्क में मुक्ति-मोक्ष की इच्छा पैदा करती है और मोक्ष प्रदान भी करती है। इसको परिधि नाम इसलिए मिला है क्योंकि इसके लिए अग्निहोत्र की आवश्यकता भी पड़ती है। Its found over Paristrina. It generate desire in the routine and optional performances of the bearer. It also gives final beatitude. Its called so because of sacrificial fire required for these performances. Left hand Ring Finger.

BEATITUDE :: परम सुख, परमगति, मोक्ष, परमानंद, निर्वाण; emancipation, beatification, blissfulness, Nirvan-Moksh, blessedness, benediction, grace, the blessings.

(3). PAT पत ::

पद्रेखा मध्यमामूले स्थूला  तिर्यग्गता तया।

भ्रातृसंपत् सर्वसौख्यं विद्यां चाप्नोति पुष्कलाम्॥

पदित्यन्ते ब्रह्मपदप्राप्तिसंसूचनात्स्मृता। 

यह गहरी, सीधी खड़ी हुई रेखा शनि पर्वत पर मध्यमा ऊँगली के मूल में दायें हाथ में पाई जाती है। इसके होने से जातक को ब्रह्म लोक की प्राप्ति होती है। उसे पर्याप्त-प्रचुर मात्रा में धन, सभी प्रकार के सुख, विद्या और अनेक भाइयों की प्राप्ति होती है।
This thick, vertical line is found at the foot of the middle finger over the right hand, granting wealth, brothers, all sorts of comforts and learning in plenty to the bearer. This line enables one in reaching Brahm Lok-Brahma Ji’s abode after death.

(4). PATI  पति ::

पतिः कनिष्ठिकामूलपर्वोर्ध्वोंशगता शिवा।

तत्फलं सद्गतिः नाम्ना बहुभर्तृत्वमीरितम्॥

रेखा छोटी ऊँगली के निम्न पर्व पर होती है। इसके परिणाम स्वरूप पुरुष जातक की सदगति हो जाती है। स्त्री जातक को यह रेखा एक उत्तम पत्नी का पद और कई बच्चों का मातृत्व प्रदान करती है। This is found over the third phalange of the little finger leading man to Kaevaly (कैवल्य) and grants excellent wife hood to the woman with many children.